Friday 19 April 2013

SHANTI

बोलना  इतना  ज़रूरी नहीं ,
पर  ज़रूरी  है  भी ...
आज की चीखती दुनिया में ,
शोर खा जाता है शांति को ,
और  जन्म लेती  है  चुप्पी ,
वो , जिसे शांति  की बहिन  मानते  हैं ,
पर दरअसल  सौतन है  वो उसकी ..

शांति भीतर  होती  है ,
चुप्पी  बाहर चीत्कारती  है ,
शांति, आत्म  की उच्चतर अवस्था ,
चुप्पी, आत्म की मृत्यु  का  शोक,
शांति , शोर  का मर्यादित विरोध,
चुप्पी , विरोध की  पराकाष्ठा,
शांति चेतना  की  वाहिनी ,
शांति  गरिमा  का  प्रसार ,
चुप्पी , गरिमा पर  मूक  प्रहार।

निराशा , चुप्पी  की  माँ,
बांधती  है ताना  बाना ,
शांति , को  चुप्पी  में  बदलने  का ,
अपनी  मानसिकता  के  ज़हर  से ,
ताकि  पनप  सके उसकी  गोद  में,
चुप्पी  से  जन्मे  बच्चे ...

सबसे  पहले  डर  आया,
फिर  जागृत  हुई  अनिच्छा,
इसके   बाद अकर्मण्यता  ने,
पग  पग  पर  भेदी  मानवता ..


इस लिए  बोलना  ज़रूरी  है,
बोलने से   आस  बंधती  है ,
आस से  निराशा  छंटती  है .
मरती है  चुप्पी , अजन्मे  रहते  है  बच्चे ,
तभी  मिल  पाती  है  शांति  मानवता  से ,
स्वगातुत्सुक  हो कर  नवनिर्माण  के ....

2 comments:

  1. छोटी सी बच्ची काफी कुछ बोल गयी...!!
    वक़्त बेवक़्त झाकते हैं अंधेरे...
    ज़रा दरीचों को कपड़े ओढा दे तो...!!!

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  2. waah!!!!!!

    पुन: प्रकाशित आपकी रचना की ये पंक्तीयाँ .. भावपूर्ण लेखन !!
    निराशा , चुप्पी की माँ,
    बांधती है ताना बाना ,
    शांति , को चुप्पी में बदलने का ,
    अपनी मानसिकता के ज़हर से ,
    ताकि पनप सके उसकी गोद में,
    चुप्पी से जन्मे बच्चे ...

    सबसे पहले डर आया,
    फिर जागृत हुई अनिच्छा,
    इसके बाद अकर्मण्यता ने,
    पग पग पर भेदी मानवता ..


    इस लिए बोलना ज़रूरी है,
    बोलने से आस बंधती है ,
    आस से निराशा छंटती है .
    मरती है चुप्पी , अजन्मे रहते है बच्चे ,
    तभी मिल पाती है शांति मानवता से ,
    स्वगातुत्सुक हो कर नवनिर्माण के ....
    -----------वाह ! माँ शारदा सदा आशीष स्नेह वर्षा करती रहे आप पर ...
    लिखते रहिये ..

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