Monday 3 September 2012

BACHPAN

हवा के उस झोंके ने
वो सब बयाँ कर दिया,
मुंह फेर जिससे हम
आगे बढ़ चले हैं;
याद  आया वो बादल
जिसमे उभरती थी दुनिया भर की आकृति,
वो पानी नहर का
जिसमें फेंका पत्थर नाच उठता जी भर कर।।
कुछ सहेजे हुए कंकड़
खेल में उछालती नन्ही हथेली,
पतली मेंड़ खेत की
चलना सीखा जिस पर गिर गिर कर।।
कुछ जोड़ी हाथ,
बंधे रहते जो हमेशा  साथ,
कच्ची आमिया तोड़ने से रसीले आम खाने तक,
शैतानी करने से ले कर मार पड़ने तक,
रात भर पढने के बहाने ढ़ेरों बातें करने तक,
 झूठ मूठ का लड़ने से बिना मनाये मानने तक।।
वो हाथ आज तो बिखर गए
पर साथ अभी भी छूटा नहीं ,
मुस्किया कर विदा हो गया बचपन
रह गयी मीठी याद येहीं ................

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