Tuesday 27 September 2016

मुठ्ठी से रेत की तरह निकलता
ज़िन्दगी के हर फासले पर फिसलता
कभी आंसू कभी हंसी बख्शता
कभी प्यार कभी  ख़ुशी तलाशता
ये कमबख्त वक़्त .....

ये दुआ हमारी हो कबूल
हमे मिले वक़्त इतना ज़रूर
मुकम्मल  हो सकें वो मामले
जिन्हें वक़्त आ कर खुद थाम ले...

ज़िन्दगी की  पाठशाला में
वक़्त वह बेंत है
ज़ख्म  वही देता है ,जो
मुनासिब नेक है...

कभी वक़्त मिले तो निकलना
वक़्त को ठीक से पहचानना
कर्म और करम दोनों का
फल देता ये एक सा !!!!

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