वो चार चूडियों से खेल रही थी ,
खिलौना महँगा नहीं था, सुन्दर भी नहीं
फिर भी वो मगन थी, खुश थी .....
क्योंकि उसके पास 'कुछ ' तो था !!!
'कुछ' पा जाने के संतोष से
आँखे चमक रही थीं,
जब वो पुरानी चूड़ियाँ
नन्ही कलाई पर खनक रही थीं।।
उस सुख क लिये कोई शब्द नहीं,
या शब्दों में वह बता नहीं सकती,
था वो पल यकीनन खूबसूरत
जब उन होंठो पर वो हंसी खिली थी
और खुशनसीब था हर वो इंसान
जिसे वह हंसी देखने मिली थी
बरबस ही वह हंसी मेरे चहरे को मुस्कान पहुंचा गई,
क्या नहीं था पास मेरे चुपचाप मुझे समझा गई.........
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